श्री शुकदेव गोस्वामी की श्री कृष्ण कथा: अदिति की प्रार्थना और कश्यप मुनि का उपदेश
1. श्री शुकदेव गोस्वामी ने कहा: हे राजन! जब अदिति के पुत्र देवताओं ने स्वर्गलोक से लुप्त हो गए और असुरों ने उनका स्थान ले लिया, तो अदिति इस तरह विलाप करने लगी मानो उसका कोई रक्षक न हो।
2. महान कश्यपमुनि लंबे ध्यान की साधना से उठकर घर लौटे और देखा कि अदिति के आश्रम में न तो हर्ष का कोई संकेत था, न ही उल्लास का माहौल था।
3. हे कुरुश्रेष्ठ! सम्मानपूर्वक स्वागत किए जाने के बाद कश्यपमुनि ने आसन ग्रहण किया और अपनी अत्यंत उदास पत्नी अदिति से इस प्रकार पूछा:
4. हे भद्रे! मुझे आश्चर्य है कि क्या धर्म, ब्राह्मण वर्ग, या समय की धारा के प्रभाव से जनता को कोई दिक्कत तो नहीं आई है?
5. हे गृहस्थ जीवन में अनुरक्त मेरी पत्नी! यदि कोई गृहस्थ धर्म, अर्थ और काम का उचित पालन करता है, तो उसके कर्म एक योगी के समान श्रेष्ठ होते हैं। मुझे हैरानी है कि कहीं इन नियमों के पालन में कोई कमी तो नहीं रह गई है?
6. मुझे यह भी आशंका है कि कहीं तुम अपने परिवार के सदस्यों में इतनी ज्यादा आसक्ति की वजह से अचानक आए अतिथियों का सही तरीके से स्वागत नहीं कर पाई और वे बिना सत्कार के लौट गए?
7. जिन घरों में मेहमान को एक गिलास जल भी नहीं भेंट किया जाता, वे घर खेतों में सियारों के बिलों के समान होते हैं।
8. हे सती और शुभे! जब मैं घर से बाहर चला गया था, क्या तुम इतनी चिंतित हो गईं कि अग्नि में घी की आहुति भी नहीं दे सकीं?
9. एक गृहस्थ अग्नि और ब्राह्मणों की पूजा करके उच्च लोकों में निवास की इच्छा पूरी कर सकता है, क्योंकि यज्ञ की अग्नि और ब्राह्मणों को देवताओं के परमात्मा स्वरूप भगवान विष्णु का मुख माना जाना चाहिए।
10. हे मनस्विनि! तुम्हारे सभी पुत्र कुशलपूर्वक तो हैं? तुम्हारा म्लान मुख देखकर मुझे लगता है कि तुम्हारा मन शांति में नहीं है। ऐसा क्यों है?
11. अदिति ने कहा: हे मेरे पूज्य ब्राह्मण पति! ब्राह्मण, गाएँ, धर्म और अन्य लोग सभी कुशलपूर्वक हैं। हे मेरे घर के स्वामी! धर्म, अर्थ और काम ये तीनों गृहस्थ जीवन में ही प्रकट होते हैं, जिससे जीवन सौभाग्यपूर्ण बनता है।
12. हे प्रिय पति! मैंने अग्नि, अतिथि, सेवक और भिखारी सभी का उचित ध्यान रखा है। चूंकि मैं हमेशा तुम्हारा चिंतन करती रहती हूँ, इसलिए धर्म में किसी भी प्रकार की उपेक्षा की संभावना नहीं है।
13. हे स्वामी! जब तुम प्रजापति हो और धर्म के सिद्धांतों के पालन में मेरे मार्गदर्शक हो, तो फिर मेरी इच्छाओं की पूर्ति में कोई विघ्न कैसे हो सकता है?
14. हे मरीचि पुत्र! तुम एक महान व्यक्ति हो, जो असुरों और देवताओं के प्रति समान भाव रखते हो, क्योंकि वे या तो तुम्हारे शरीर से उत्पन्न हुए हैं या तुम्हारे मन से। वे सतो, रजो और तमो गुणों से युक्त हैं। लेकिन परम नियंता भगवान समस्त जीवों पर समान दृष्टि रखते हुए भक्तों के प्रति विशेष रूप से कृपालु होते हैं।
15. इसलिए हे भद्र स्वामी! अपनी दासी पर कृपा करो। असुरों ने हमें ऐश्वर्य और घर-बार से वंचित कर दिया है। कृपया हमें अपनी सुरक्षा प्रदान करो।
16. शक्तिशाली असुरों ने हमारा ऐश्वर्य, सौंदर्य, यश, यहाँ तक कि हमारा घर भी हमसे छीन लिया है। अब हमें वनवास दे दिया गया है और हम विपत्ति के सागर में डूब रहे हैं।
17. हे श्रेष्ठ साधु, हे कल्याणकारी परमश्रेष्ठ! कृपया हमारी स्थिति पर ध्यान दें और मेरे पुत्रों को ऐसा वरदान दें जिससे वे अपनी खोई हुई वस्तुएँ पुनः प्राप्त कर सकें।
18. श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: जब अदिति ने इस प्रकार कश्यप मुनि से प्रार्थना की, तो उन्होंने थोड़ा हंसते हुए कहा: “अरे! भगवान विष्णु की माया कितनी अद्भुत है, जिससे समस्त संसार बच्चों के स्नेह में बंधा रहता है।”
19. कश्यप मुनि ने कहा: यह भौतिक शरीर पाँच तत्वों से बना है और आत्मा से भिन्न है। सत्य यह है कि आत्मा इन भौतिक तत्वों से बिल्कुल भिन्न है। लेकिन शारीरिक लगाव के कारण ही किसी को पति या पुत्र माना जाता है। ये मोहयुक्त संबंध अज्ञान के कारण उत्पन्न होते हैं।
20. हे अदिति! तुम भगवान की भक्ति में लगो, जो सभी के स्वामी, शत्रुओं को हरने वाले और सभी के हृदय में निवास करते हैं। वे ही परम पुरुष श्री कृष्ण या वासुदेव हैं, जो सबको सुख और वरदान देने में सक्षम हैं।
21. दयालु भगवान तुम्हारी सारी इच्छाओं को पूरा करेंगे, क्योंकि उनकी भक्ति अच्युत है। भक्ति के अलावा सभी अन्य उपाय निरर्थक हैं। यही मेरा विश्वास है।
22. श्रीमती अदिति ने कहा: हे ब्राह्मण! मुझे वह विधि बताएं जिससे मैं भगवान की पूजा कर सकूं और भगवान मुझसे प्रसन्न होकर मेरी सभी इच्छाओं को पूरा कर दें।
23. हे ब्राह्मणश्रेष्ठ! कृपया मुझे भगवान की भक्तिपूर्वक पूजा की विधि बताएं, जिससे भगवान मुझ पर प्रसन्न हो जाएं और मुझे मेरे पुत्रों के साथ इस संकट से उबार लें।
24. श्री कश्यप मुनि ने कहा: जब मुझे संतान की इच्छा हुई, तो मैंने कमलपुष्प से उत्पन्न ब्रह्माजी से पूछा। अब मैं तुम्हें वही विधि बताऊंगा, जो ब्रह्माजी ने मुझे सिखाई थी और जिससे भगवान केशव तुष्ट होते हैं।
25. फाल्गुन मास (फरवरी-मार्च) के शुक्ल पक्ष में द्वादशी के बारह दिनों तक मनुष्य को केवल दूध पर निर्भर रहकर व्रत करना चाहिए और भक्तिपूर्वक कमलनयन भगवान की पूजा करनी चाहिए।
26. यदि सुअर द्वारा खोदी गई मिट्टी उपलब्ध हो, तो अमावस्या के दिन अपने शरीर पर इस मिट्टी का लेप करें और बहती नदी में स्नान करें। स्नान करते समय निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करें:
27. हे माता पृथ्वी! तुम्हारे द्वारा ठहरने के स्थान की इच्छा से भगवान ने वराह रूप में तुम्हें ऊपर उठाया। मैं प्रार्थना करती हूँ कि कृपया मेरे पापी जीवन के सारे कर्मों के फलों को नष्ट कर दो। मैं तुम्हें सादर नमस्कार करती हूँ।
28. तत्पश्चात अपने नियमित और वैकल्पिक आध्यात्मिक कार्यों को पूरा करें और बड़े मनोयोग से भगवान के अर्चाविग्रह की पूजा करें। साथ ही वेदी, सूर्य, जल, अग्नि और गुरु की भी पूजा करें।
29.हे भगवान, हे महानतम, हे सभी के हृदय में वास करने वाले, हे प्रत्येक वस्तु के स्वामी, हे सर्वश्रेष्ठ और सर्वव्यापी पुरुष वासुदेव! मैं तुम्हें सादर नमस्कार करती हूँ।
30. हे परम पुरुष! मैं तुम्हें सादर नमस्कार करती हूँ। अत्यंत सूक्ष्म होने के कारण तुम भौतिक आँखों से कभी नहीं देखे जाते। तुम चौबीस तत्त्वों के ज्ञाता और सांख्य योगपद्धति के प्रवर्तक हो।
31. हे भगवान! मैं तुम्हें सादर नमस्कार करती हूँ, जिनके दो सिर (प्रायणीय और उदानीय), तीन पाँव (सवन-त्रय), चार सींग (चार वेद), और सात हाथ (सप्त छंद यथा गायत्री) हैं। मैं तुम्हें सादर नमस्कार करती हूँ, जिनका हृदय और आत्मा तीनों वैदिक काण्डों (कर्मकाण्ड, ज्ञानकाण्ड और उपासना काण्ड) हैं और जो इन काण्डों को यज्ञ के रूप में फैलाते हैं।
32. हे शिव, हे रुद्र! मैं समस्त शक्तियों के स्रोत, समस्त ज्ञान के भण्डार और प्रत्येक जीव के स्वामी को सादर नमस्कार करती हूँ।
33. हिरण्यगर्भ में स्थित, जीवन के स्रोत, हर जीव के परमात्मा स्वरूप को मैं सादर नमस्कार करती हूँ। तुम्हारा शरीर समस्त योग की ऐश्वर्य का स्रोत है। मैं तुम्हें सादर नमस्कार करती हूँ।
34. मैं आदि भगवान, प्रत्येक के हृदय में स्थित साक्षी तथा मनुष्य रूप में नर–नारायण ऋषि के अवतार आपको सादर नमस्कार करता हूँ।
35. हे पीताम्बरधारी भगवान! मैं आपको सादर नमस्कार करता हूँ। आपके शरीर का रंग मरकत मणि जैसा है और आप लक्ष्मीजी को पूर्णतः वश में रखने वाले हैं। हे भगवान केशव! मैं आपको सादर नमस्कार करता हूँ।
36. हे परम पूज्य भगवान, हे वरदायकों में सर्वश्रेष्ठ! आप हरेक की इच्छाओं को पूरा कर सकते हैं अतएव जो धीर हैं, वे अपने कल्याण के लिए आपके चरणकमलों की धूल को पूजते हैं।
Also read: श्री राम स्तुति अर्थ सहित
37. सारे देवता तथा लक्ष्मीजी भी उनके चरणकमलों की सेवा में लगी रहती हैं। दरअसल, वे उन चरणकमलों की सुगन्ध का आदर करते हैं। ऐसे भगवान मुझ पर प्रसन्न हों।
38. कश्यप मुनि ने आगे कहा: इन सभी मंत्रों के उच्चारण द्वारा भगवान का श्रद्धा तथा भक्ति के साथ स्वागत करके एवं उन्हें पूजा की वस्तुएँ (पाद्य तथा अर्ध्य) अर्पित करके मनुष्य को केशव अर्थात हृषीकेश अर्थात भगवान कृष्ण की पूजा करनी चाहिए।
39. `सर्वप्रथम भक्त को द्वादश अक्षर मंत्र का उच्चारण करना चाहिए और फूल की माला, अगुरु इत्यादि अर्पित करने चाहिए। इस प्रकार से भगवान की पूजा करने के बाद भगवान को दूध से नहलाना चाहिए और उन्हें उपयुक्त वस्त्र तथा यज्ञोपवीत (जनेऊ) पहनाकर गहनों से सजाना चाहिए। तत्पश्चात भगवान के चरणों का प्रक्षालन करने के लिए जल अर्पित करके सुगन्धित पुष्प, अगुरु तथा अन्य सामग्री से भगवान की पुनः पूजा करनी चाहिए।
40. यदि सामर्थ्य हो तो भक्त अर्चाविग्रह पर दूध में घी तथा गुड़ के ,साथ पकाये चावल अर्थात खीर चढ़ाए। उसी मूल मंत्र का उच्चारण करते हुए यह सामग्री अग्नि में डाली जाये।
41. उसे चाहिए कि वह सारा प्रसाद या उसका कुछ अंश किसी वैष्णव को दे और तब कुछ प्रसाद स्वयं ग्रहण करे। तत्पश्चात अर्चाविग्रह को आचमन कराए और तब पान सुपारी चढ़ाकर फिर से भगवान की पूजा करे।
42. तत्पश्चात उसे चाहिए कि वह मन ही मन में 108 बार मंत्र का जप करे और भगवान की महिमा की स्तुतियाँ करे। तब वह भगवान की प्रदक्षिणा करे और अन्त में परम सन्तोष तथा प्रसन्नतापूर्वक भूमि पर लोटकर (दण्डवत) प्रणाम करे।
43. अर्चाविग्रह पर चढ़ाये गये जल तथा सभी फूलों को अपने सिर से छूने के बाद उन्हें किसी पवित्र स्थान पर उँड़ेल दे। तब कम से कम दो ब्राह्मणों को खीर का भोजन कराए।
44-45. जिन सम्मान्य ब्राह्मणों को भोजन कराया हो उनका भलीभाँति सत्कार करे और तब उनकी अनुमति से अपने मित्रों तथा सम्बन्धियों सहित स्वयं प्रसाद ग्रहण करे। उस रात में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करे और दूसरे दिन प्रातः स्नान करने के बाद अत्यन्त शुद्धता तथा ध्यान के साथ अर्चाविग्रह को दूध से स्नान कराए और विस्तारपूर्वक पूर्वोक्त विधियों के अनुसार उनकी पूजा करे।
46. केवल दूधपान करके और श्रद्धा तथा भक्तिपूर्वक भगवान विष्णु की पूजा करते हुए भक्त इस व्रत का पालन करे। उसे चाहिए कि वह अग्नि में हवन करे और पूर्वोक्त विधि से ब्राह्मणों को भोजन कराए।
47. इस तरह बारह दिनों तक प्रतिदिन भगवान का पूजन, नैत्यिक कर्म, हवन तथा ब्राह्मण–भोजन सम्पन्न कराकर यह पयोव्रत सम्पन्न किया जाये।
48. प्रतिपदा से लेकर अगले शुक्लपक्ष की तेरस (शुक्ल त्रयोदशी) तक पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करे, फर्श पर सोये, प्रतिदिन तीन बार स्नान करे और इस व्रत को सम्पन्न करे।
49. इस अवधि में सांसारिक प्रपंचों या इन्द्रियतृप्ति के विषय पर अनावश्यक चर्चा न चलाये, वह सारे जीवों के प्रति ईर्ष्या से पूर्णतया मुक्त रहे और भगवान वासुदेव का शुद्ध एवं सरल भक्त बने।
50. तत्पश्चात शास्त्रविद ब्राह्मणों की सहायता से शास्त्रों के आदेशानुसार शुक्लपक्ष की तेरस को भगवान विष्णु को पञ्चामृत (दूध, दही, घी, चीनी तथा शहद) से स्नान कराये।
51-52. धन न खर्च करने में कंजूसी की आदत छोड़कर अन्तर्यामी भगवान विष्णु की भव्य पूजा का आयोजन करे। मनुष्य को चाहिए कि वह अत्यन्त मनोयोग से घी में पकाये अन्न तथा दूध से आहुति (हव्य) तैयार करे और पुरुष–सूक्त मंत्रोच्चार करे और विविध स्वादों वाले भोजन अर्पण करे। इस प्रकार मनुष्य को भगवान का पूजन करना चाहिए।
53. मनुष्य को चाहिए कि वह वैदिक साहित्य में पारंगत गुरु (आचार्य) को तुष्ट करे और उनके सहायक पुरोहितों को (जो होता, उदगाता, अध्वर्यु तथा ब्राह्मण कहलाते हैं) तुष्ट करे। उन्हें वस्त्र, आभूषण तथा गाएँ देकर प्रसन्न करे। यही विष्णु–आराधन अर्थात भगवान विष्णु की आराधना का अनुष्ठान है।
54. हे परम पवित्र स्त्री! मनुष्य को चाहिए कि वह ये सारे अनुष्ठान विद्वान आचार्यों के निर्देशानुसार सम्पन्न करे और उन्हें तथा उनके पुरोहितों को तुष्ट करे। उसे चाहिए कि प्रसाद वितरण करके ब्राह्मणों को तथा वाहन पर एकत्र हुए लोगों को भी तुष्ट करे।
55. मनुष्य को चाहिए कि गुरु तथा सहायक पुरोहितों को वस्त्र, आभूषण, गाएँ तथा कुछ धन का दान देकर प्रसन्न करे तथा प्रसाद वितरण द्वारा वहाँ पर आये सभी लोगों को यहाँ तक कि सबसे अधम व्यक्ति चाण्डाल (कुत्ते का माँस खाने वाले) को भी तुष्ट करे।
56. मनुष्य को चाहिए कि वह दरिद्र अन्धे, अभक्त तथा अब्राह्मण हर व्यक्ति को विष्णु प्रसाद बाँटे। यह जानते हुए कि जब हरेक व्यक्ति पेट भरकर विष्णु–प्रसाद पा लेते है तो भगवान विष्णु परम प्रसन्न होते हैं। यज्ञकर्ता को अपने मित्रों तथा सम्बन्धियों के साथ–साथ प्रसाद ग्रहण करना चाहिए।
57. प्रतिपदा से त्रयोदशी तक इस अनुष्ठान को मनुष्य प्रतिदिन नाच, गाना, बाजा, स्तुति तथा शुभ मंत्रोच्चार एवं श्रीमदभागवत के पाठ के साथ–साथ जारी रखे। इस प्रकार मनुष्य भगवान की पूजा करे।
58. यह धार्मिक अनुष्ठान पयोव्रत कहलाता है, जिसके द्वारा भगवान की पूजा की जा सकती है। यह ज्ञान मुझे अपने पितामह ब्रह्माजी से मिला और अब मैंने विस्तार के साथ इसका वर्णन तुमसे किया है।
59. हे परम भाग्यशालिनी! तुम अपने मन को शुद्ध भाव में स्थिर करके इस पयोव्रत विधि को सम्पन्न करो और इस तरह अच्युत भगवान केशव की पूजा करो।
60. यह पयोव्रत सर्वयज्ञ भी कहलाता है। दूसरे शब्दों में, इस यज्ञ को सम्पन्न कर लेने पर अन्य सारे यज्ञ स्वतः सम्पन्न हो जाते हैं। इसे समस्त अनुष्ठानों में सर्वश्रेष्ठ भी माना गया है। हे भद्रे! यह समस्त तपस्याओं का सार है और दान देने तथा परम नियन्ता को प्रसन्न करने की विधि है ।
61. अधोक्षज कहलाने वाले दिव्य भगवान को प्रसन्न करने की यह सर्वोत्तम विधि है। यह समस्त विधि–विधानों में श्रेष्ठ है, यह सर्वश्रेष्ठ तपस्या है, दान देने की और यज्ञ की सर्वश्रेष्ठ विधि है।
62. अतएव हे भद्रे! तुम विधि–विधानों का दृढ़ता से पालन करते हुए इस आनुष्ठानिक व्रत को सम्पन्न करो। इस विधि से परम पुरुष तुम पर शीघ्र ही प्रसन्न होंगे और तुम्हारी सारी इच्छाओं को पूरा करेंगे।
धन्यवाद!
Pingback: सावन शिवरात्रि 2024: तारीख, पूजा मुहूर्त और महत्व | Bhrigu Jyotish Kendra
Pingback: Nag Panchami 2024: नाग पंचमी के बारे में जानिए तारीख, शुभ मुहूर्त और नाग पंचमी कथा | Bhrigu Jyotish Kendra
Pingback: गणेश चतुर्थी 2024: घर पर गणपति की पूजा कैसे करें? जानें सरल पूजा विधि, सामग्री और शुभ मुहूर्त | Bhrigu Jyotish Kendra